हिंदी साहित्यकार रत्नकुमार सांभरिया जी के साहित्य पर यशवंत में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार सम्पन्न -NNL


नांदेड|
पूर्व प्रति कुलपति एवं प्रधानाचार्य प्रो.डॉ.गणेशचन्द्र शिंदे जी के मार्गदर्शन के आधीन  दिनांक : 30/04/2022 को यशवंत महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार ‘रत्नकुमार सांभरिया जी का कथा साहित्य और वीमा नाटक’ गूगल मीट पर  सुबह ग्यारह बजे से लेकर ३ बजे तक आभासी सभागार में सम्पन्न हुआ | इस वक्त आभासी मंच पर प्रमुख अतिथि रूप में हिंदी साहित्यकार रत्नकुमार सांभरिया, राजस्थान थे तो,  बीज भाषक के रूप में डॉ.रमेश कुरे हिंदी अध्ययन मंडल के सदस्य, स्वा.रा.ती.म.विश्वविद्यालय, नांदेड एवं नारायणराव वाघमारे महाविद्यालय, अखाड़ा बालापुर, हिंगोली तथा प्रमुख वक्ता के रूप में – प्रो.डॉ.रमा नवले, पूर्व प्रधानाचार्य पीपल्स महाविद्यालय, नांदेड तथा डॉ.विजयसिंह ठाकुर(हिंदी विभाग प्रमुख ), संयोजक डॉ.सुनील जाधव, सह संयोजक डॉ.ज्योति मुंगल, डॉ.शोभा ढानकीकर उपस्थित थे |

कार्यक्रम तीन सत्रों में सम्पन्न हुआ | पहला सत्र उद्घाटन सत्र था | संचलन के साथ  डॉ.सुनील जाधव ने अतिथि का परिचय दिया तो कार्यक्रम की भूमिका डॉ.विजयसिंह ठाकुर ने रखी | प्रमुख अतिथि एवं उद्घाटक रूप में हिंदी साहित्यकार रत्नकुमार सांभरिया जी ने कार्यक्रम का उद्घाटन करने के पश्चात अपनी बात रखते हुए, अपने लेखक जीवन की यात्रा को वास्तविक जीवन अनुभवों के साथ  साझा करते हुए वीमा नाटक के बनने की कहानी सुनाई | वर्तमान में उनका वीमा नाटक देश के पांच विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता हैं और कहानियाँ 21 से अधिक विश्वविद्यालयों में | शब्दों की ताखत को बताते हुए वीमा नाटक के सम्बन्ध में कहा, आँख वाले जो देख नहीं सकते वे बिना आँख वाले सबकुछ देख लेते हैं |

सत्र के इसी भाग में रत्नकुमार कुमार सांभरिया का कथा साहित्य और वीमा एवं अन्य नाटक विषय पर अभ्यास पूर्ण बीज  वक्तव्य डॉ.रमेश कुरे जी का रहा | संवाखें  कहानी का रुंपातरण वीमा नाटक में हुआ | लेखक ने संवाखें का अर्थ आँख वाले जो देख नहीं सकते देखना बताया तो इसी तर्ज पर कुरे जी ने संवाखें को लेकर, लोग जो देख नहीं सकते  वह साहित्यकार देखता है, बताया | और उनकी प्रतिनिधि कहानियों की विस्तार से समीक्षा करते हुए, उनके कहानियों में स्थित  बदलता परिवेश, शिक्षा के प्रति जागृति , समाज को जोडनेवाला, निर्बलों में सबलता , स्त्री, वृद्ध, घुमन्तु, दिव्यांग विमर्श जैसे  विभिन्न बिन्दुओं की और ध्यानाकर्षित किया |

दूसरे सत्र का संचलन डॉ.ज्योति मुंगल ने किया | प्रमुख वक्ता डॉ.रमा नवले जी थे तो अध्यक्ष रूप में डॉ.रमेश कुरे थे | अपना वक्तव्य देते हुए प्रो.डॉ.रमा नवले जी ने रत्नकुमार सांभरिया का वीमा नाटक इस विषय पर समीक्षात्मक वक्तव्य रखा | वीमा नाटक नेत्रहीनों के प्रति सहानुभूति नहीं दर्शाता बल्कि उन्हमें हिम्मत और सामर्थ्य भरता हैं | वीमा नाटक के  नेत्रहीन और दिव्यांग पात्र बहुत साहसी हैं |  वे किसी और के बलबूते नहीं बल्कि अपने बलबूते पर न्याय को प्राप्त करते हैं | नेत्रहीनों की इस नई संवेदना के कारण  इसीलिए दलित विमर्श आज एक पायदान आगे बढ़ चुका हैं | अध्यक्ष रूप में विराजमान डॉ.रमेश कुरे जी ने उनके अन्य दो नाटकों भभूल्या और उजास की समीक्षा प्रस्तुत की| भभूल्या में प्रशासकीय व्यवस्था रूपी चक्रवात घुमंतुओं का शोषण को व्यक्त करता हैं तो उजास नाटक  मन्दिर प्रवेश के षड्यंत्र को समाज के सामने उजागर करता हैं | सत्र का आभार डॉ.सुनील जाधव ने व्यक्त किया | अंत में हिंदी विभाग प्रमुख डॉ. विजयसिंह ठाकुर  द्वारा प्राचार्य जी का संदेश दिया गया एवं  समापन सत्र का आभार प्रदर्शन किया गया |

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