मराठा शौर्य दिवस पर गणमान्य व्यक्तींयो ने किया सेनानींयो को अभिवादन

मराठा शौर्य दिवस, मराठा शौर्य तिर्थस्थल, कालाआम्ब, पानिपत, सनोली रोड, हरियाणा में प्रतिवर्ष कि तरहा इस वर्ष भी तारीख 14 जनवरी को आयोजन किया गया था, इस वक्त सेनानींयो कि यादो को ताजा करते हुए विनम्र अभिवादन किया गया है/  

इस समारोह के अवसर पर मुधोजी राजे भोसले नागपूर, विधायक श्री. मुळीक पुणे, इंजि. कामाजी
पवार राष्ट्रीय अध्यक्ष, मराठासेवा संघ, विधीज्ञा मनोज आखरे अध्यक्ष संभाजील बिग्रेड, महासचिव श्री. सौरभ खेडेकर कमलेश पाटील, दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय महासचिव, मराठा सेवा संघ, मराठा इतिहासकार डॉ. वसंतराव मोरे, कोल्हापूर, मराठा इतिहासकार डॉ. सुभाषचंद्र गंगवार, अध्यक्ष, मराठा सेवा संघ, उत्तरप्रदेश, लखनऊ, मराठा इतिहासकार डॉ. राजेंद्र सिंह गंगवार सतना, सुधीर भिसे अध्यक्ष मराठा मिशन तेलंगना, डा. अवनिंद्र महतो अध्यक्ष मराठा मिशन झारखंड, डॉ. विरेंद्र भाटी अध्यक्ष मराठा मिशन उत्तरप्रदेश, डॉ. धिरेंद्र गंगवार अध्यक्ष मराठा मिशन उत्तराखंड, जतीन पाटीदार अध्यक्ष मराठा सेवा संघ गुजरात, व्यावसायिक सुहास भोसले मुंबई, व्यावसायिक अनिल पाटील बरेली, व्यावसायिक प्रदीप दिल्ली, समाजसेविका विधीज्ञ सुजाता देशमुख मुंबई, कविता नारायणन दिल्ली आदी प्रमुख अतिथिगन उपस्थित थे/

कार्यक्रम कि सुरुवात सुबह 8.30 बजे तकरीबन 1300 बाईक पर दो दो मराठा युवा की रैली कुरुक्षेत्र कर्नाल घरौंदा पानिपत होते हुये कालाआंब पानिपत पहुची. हरयाणा महाराष्ट्र केशिवाय देशभरसे तकरीबन 70 जिलो से प्रतिनिधी पहुचे थे. कार्यक्रम में तकरीबन दस हजार से साथियोने उपस्थिती दर्ज. राष्ट्रीय महामार्ग एक से गुजरती बाईक रैलीने रोमांचभरा माहौल बना दिया था. सबलोग रोडधर्मशाला पानिपत के सामने एकठ्ठा होकर ऐतिहासिक प्रात्यक्षिक का सादरीकरण करके कालाआम पहुचे. यहा स्मृतीस्थल वंदन महाराजा रघुजी राजे भोसले के वंशज श्री. मुधोजीराजे भोसले तथा अन्य प्रमुख अतिथी गण, उपस्थिती समुदायने पानिपत युध्दस्थल स्थित महाविरों केस्मृती स्थल पर जिजाऊ वंदना के बाद नमर करके कार्यक्रम स्थल पर पधारे. 

बाद उसके स्वराज्य का निशान ध्वज प्रमुख मान्यवरो से लहराया गया, दिल्ली से प्रो. रणजीत ठिपे पाटील के साथ तकरीबन देडसो युवा साथीयों की उपस्थिती रही. सुबह साढेआठ बजे बसेस व अन्य वाहन पानिपत पहुचे थे, कार्यक्रम में उक्त वक्ताओने मानवंदना स्वरुप उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया.
१) विधीज्ञ मनोज आखरे ने अपने संबोधन में कहा की पानिपत का कालाआम राष्ट्रभक्ती प्रेरणा केंद्र बनाकर सरकार एक भारत बनाने में आगे आये. छत्रपती शिवाजी महाराज की एकीकृत मावला सेना की रचना से भारत मे व्याप्त सामाजिक वर्चस्व के ठेकेदारों को, भारत का रुढीवादी परंपरावादी धर्मवादी समाज बर्दाश्त नही कर पाया. जिसे आगे चलकर पेशवाओं ने मावला यह एकीकृत समाज और सेना में पुन: जातीयों पंक्तियॉ खडी करके विभाजन कर दिया. मावला इस एक राष्ट्रीय सामाजिक एकीकरण से सेना पुन: जातीयों मे विभाजित हो गई.  राष्ट्रमाता गुरुमाता जिजाऊ, स्वराज्यसंकपिक महाराज शहाजी राजे भोसने के निर्देशन में छत्रपती शिवाजी महाराजने तत्कालिन जात व्यवस्था को तोडकर राष्ट्र और समाज की जरुरते पुरी करनेवाले विभिन्न इंजिनियरींग वर्ग अर्थात अलुतेदार बलुतेदार जातियों का एकीकरण किया. उन्हे एक नई सामाजिक राष्ट्रीय पहचान दिलाई मावला. वही आगे चलकर मराठा पहचान बनी. एक नया समाज एक नया धर्म एकनई पहचान एक नई सभ्यता एक नया राष्ट्रीय सामाजिक एकीकरण. 

२) कार्यक्रम का पूर्वइतिहास - 14 जनवरी 1761 को अफगाण बादशाह के आक्रमण से बचाने महाराष्ट्र कर्नाटक मध्यप्रदेश से देड लाख मराठा सेनानी पानिपत पधारे थे. अपना घर परिवार समाज प्रदेश छोडकर राष्ट्र के लिए शहादत देने कोई किसी एक प्रदेश से किसी एक बिरादरी से कोई समाज अपने देश को बचाने तकरीबन 1500 से 2000 किलोमीटर इतना दूर आने का दुनिया के मानव समाज के इतिहास मे कही ऐसा उदाहरण नही मिलेगा. पेशवाओं की दूरदृष्टी तथा दिल्ली के स्थानिय राजा सरदारो से समन्वय ना रखने के कारण घने कोहरे की थंड में मराठो की दुद्रशा काकारण बना. जो फौज 15वर्ष से 40 वर्ष के बीज चुनचुनकर पेशवाओने पानिपत भेजी वह प्रत्यक्ष युध्द के पहले ही पानिपत उतार दी. कोहरे के फायदा लेकर अब्दानी को घेरने का सप्लाय रुट तोडने का मौका मिला. प्रत्यक्ष पेशवा सदाशिवराव युध्द के सप्तांत पूर्व ही पानिपत पहुचा. इतिहासकार कहते नही थकते की पानिपत का युध्द मराठा जित जाते तो शायद सम्राट अशोक का भारत दुबारा देखने का मौका भारतीय समाज को मिलता. अंग्रेज आने का कोई सवालही नही रहता.     

३) आखिर पेशवाओं की कमजोर नीती और नियोजित दूरदृष्टी के बावजूद,  क्युंकी युध्द के नतिजो से लगता है की अब्दाली युध्द के बाद भारत रुका ही नही. उलटा मराठा साम्राज्य का विस्तारही हुऑ. मल्हारराव के बाद तथा 1794 मे महाजदी सिंधिया की मृत्यु के बाद ही अंग्रेजो को 1818 तक भारत पर कब्जा करने मे सफलता मिली. सोचो 1761 मे इतनी हानी होने के बावजूद अंग्रेजो को भारत पर कब्जा करने मे 68 वर्ष लगे. अगर युध्द पुरी तरह मराठे जित जाते तो दुबारा भारत का विस्तार सम्राट अशोका की याद दिलाता. भारतीय लोगो की विजयी प्रतिष्ठा दुनिया मे लहराती. पेशवाओं को इस सफलता मे क्यु खटास लगी ?  .

४) पानिपत के युध्द बहाने महारणधुरंधर मराठा सेनानियों की स्मृती मे प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मराठा शौर्य दिवस मनाया जाता है. यह आयोजन वर्ष 2008 से नियमित तौर पर मराठा सेवा संघ तथा मराठा जागृति मंच के बैनरतले संपन्न होता है. इस आयोजन की शुरुआत सेवावकाश IAS श्री. विरेंद्र मराठा जी के नेतृत्व में मराठा जागृति मंच हरयाणा ने की है. जिसमे मराठा सेवा संघ एक सहायक के तौर पर वर्ष 2000 से योगदान देता आ रहा है. महाज्ञानसृज शिवमान पुरुषोत्तम खेडेकर जी संस्थापक अध्यक्ष, मराठा सेवा संघ के अथक प्रयास से 250 वर्ष तक महाराष्ट्र से बिछडे खोये हुये मराठा विरों को  मराठा पहचान दिलाई गई. यह आयोजन  27 नवंबर 2005 को शिवमान मराठा विरेंद्र वर्मा जी के प्रयास से कर्ण स्टेडियम, कर्नाल मे मराठा मिलन समारोह का सफल आयोजन हुऑ. जिसमे तकरीबन तीन लाख से जादा रोडभाईयों की भीड रही. 1761 मे परिस्थितीवश मराठा से रोड बने हमारे पूर्वजों को 25 नवंबर 2005 को मूल मराठा पहचान से जाहीर किया गया. इस प्रतिष्ठा बहाल कार्यक्रम में छत्रपती उदयनराजे भोसले, राजमाता, वर्तमान मंत्री तत्कालिन सांसद सुभाषदेशवमुख, तत्कालिन मंत्री तथा विधायक डॉ.पंतगराव कदम, राष्ट्रसंत भय्युजीमहाराज, तत्कालिन विधायक रेखाताई खेडेकर, शिवमान पुरुषोत्तमखेडेकर आदी उपस्थिती रही.  इसी क्रम मे प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मराठा शौर्य दिवस मनाया जाता है. तिसरे पानिपत युध्द मे समर्पित मराठा सेनानियों की स्मृती में आयोजित इस समारोह में हजारो लोगों की उपस्थिती ठी ऐसी जाणकारी कमलेश पाटील, मराठा सेवा संघ, दिल्ली द्वारा जारी कि गई है/ 

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